Friday, August 10, 2012

KAISI AAZADI




KAISI AAZADI

Apni kismat chand haathon me Simat kar rah gai
Hum huye aazad, Par aazadi bant kar rah gai

Itne varshon baad bhi Do waqt ki roti nahin
Log sote hain sadak par Baat ye chhoti nahin
Kaagjon par yojnayen bus Budget par rah gai

Loot,Bhrashtachar,Atyachar ka hai silsila
Naariyon ki asmaton ka Koi rakshak na mila
Desh ki kaanoon vyavastha Ulat kar rah gai

Raajneetik beimaanon ko Na koi sharm hai
Chaaploosi tikdamon se Raaj karna dharm hai
Aam janta apni badhaali Pragat kar rah gai

Na koi ummeed baaki Aur na koi aas hai
Apne hi haathon bika ye Desh ka vishwas hai
Kaalima me roshni ki dhoop Chhant kar rah gai

Hum huye aazad, Par aazadi bant kar rah gai

Sunil_Telang/10/08/2012


कैसी  आज़ादी 

अपनी  किस्मत  चंद हाथों  में  सिमट  कर  रह  गई 
हम  हुये  आज़ाद,  पर  आज़ादी  बंट कर  रह  गई 

इतने  वर्षों   बाद  भी  दो  वक़्त  की  रोटी  नहीं 
लोग  सोते  हैं  सड़क  पर  बात  ये  छोटी  नहीं 
कागजों  पर  योजनायें  बस  बजट   पर  रह  गई 

लूट ,भ्रष्टाचार ,अत्याचार  का  है  सिलसिला 
नारियों  की  अस्मतों  का  कोई  रक्षक  ना  मिला 
देश  की  क़ानून  व्यवस्था  उलट  कर  रह  गई 

राजनीतिक  बेईमानों  को  ना  कोई  शर्म  है 
चापलूसी  तिकड़मों  से  राज  करना  धर्म  है 
आम  जनता  अपनी  बदहाली  प्रगट  कर  रह  गई 

ना  कोई  उम्मीद  बाकी और  ना  कोई  आस  है 
अपने  ही  हाथों  बिका  ये  देश  का  विश्वास  है 
कालिमा  में  रोशनी  की  धूप  छंट  कर  रह  गई 

हम  हुये  आज़ाद, पर  आज़ादी  बंट  कर  रह  गई

सुनील _तैलंग /10/08/2012

No comments:

Post a Comment