Sunday, October 14, 2012

WO KHAT





वो ख़त 


हिचकियाँ  जब  भी  मुझको  आती  हैं 
एक  अहसास   मुझको  होता   है  
मेरी  यादों  को  भूलने  के  लिये
कोई   इक  शख्स  बहुत  रोता  है 

दिल  तो  है  चीज़  बड़ी  नाज़ुक  सी 
एक  ठोकर  में  टूट  जाती  है 
मोल  अश्कों  का  वही  समझेगा 
रोज   तकिये  को  जो  भिगोता  है 

कभी  तनहाइयों  में  जो  अक्सर 
मेरे  दिन  रात   के  सहारे   थे 
चैन  मिलता  नहीं  वो  ख़त  पढ़  के 
और  दिल  बेकरार   होता  है  

प्यार  हद  से  कभी  करो  ज्यादा 
बेरुखी  में  वो  बदल  जाता  है 
जो  लुटाता  है  ज़िन्दगी  अपनी 
नींद  और   चैन  वोही  खोता  है 

मिल  गया  हो   जो  खुशनसीबी  से 
उसके  जाने  का  कोई  ग़म    न  करो 
प्यार  का  बदला  वफ़ा  से  मिलना 
एक  खुशफ़हम  ख्वाब  होता  है 

सुनील  _तैलंग /14/10/2012

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