सड़क के आदमी
हम सड़क के आदमी हैं, आम हैं
इसलिये अब तक बने ग़ुलाम हैं
देश तो आज़ाद है , पर हम नहीं
ज़ुल्म, अत्याचार अब भी कम नहीं
कागजों में बस हमारे नाम हैं
भूख मंहगाई गरीबी से लड़ाई
करते करते उम्र ये हमने बिताई
कल की चिंता में ये सुबहो -शाम हैं
राज तो कहते हैं अपना आ गया है
ताज पाकर हर कोई बौरा गया है
बस परेशां देश की अवाम हैं
Sunil_Telang/29/10/2012
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