खैरात
कल तलक कालिख जमीं थी, आज उजले हो गये
घिसते घिसते लोग पीतल के सुनहले हो गये
दाग दामन के सभी के धुल गये इक रात में
मिल गया खिदमतगिरी का सबको फल खैरात में
गर्द में लिपटे हुए चेहरे रुपहले हो गये
अपने ही गुणगान करना सबकी आदत बन गई
सिर्फ बुत को पूजना ही बस इबादत बन गई
इस ज़मीं पर कुछ खुदा रब से भी पहले हो गये
आने वाला है इलेक्शन अब लगी सबको फिकर
भूख लाचारी गरीबी का भी अब होगा जिकर
कितने दिन इस देश की जनता को बहले हो गये
Sunil_Telang/29/10/2012
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