क्या आप SYSTEM बदलना चाहते हैं ???
आज हर व्यक्ति चाहता है कि SYSTEM में बदलाव हो | चाहे वो व्यक्ति गरीब हो या अमीर, परेशानी सभी को है | फिर भी जब भी कोई शख्स बदलाव का प्रयास करता है ,तो कुछ लोग उसमे कमियां निकालना शुरू कर देते हैं और बताते हैं कि ये प्रयास सफल नहीं हो पायेगा |
चाहे अन्ना हजारे हों, बाबा रामदेव हों या अरविन्द केजरीवाल, हम लोगों की जुबान इनके आन्दोलन को सहयोग देने की वजाय इनकी कमियों को दिखाने और आलोचना करने में ही चलती है इस दुनिया में 2 तरह के लोग हैं, एक वो जो वर्तमान SYSTEM व्यवस्था से खुश हैं और येन केन प्रकारेण भ्रष्टाचारी सिस्टम में लिप्त होकर धन कमाने में जुटे हैं, चाहे वो कुछ समय के लिए ही हो,लेकिन उन्हें जब भी मौका मिलता है, वो अवसर को भुनाते हैं और धन कमाकर अपना और अपनी पीढ़ियों का भविष्य सुरक्षित करना चाहते हैं | ऐसे व्यक्ति केवल भारी मन से भ्रष्टाचार का विरोध करते हैं लेकिन असल में वे इस SYSTEM से खुश हैं । लेकिन ऐसे व्यक्तियों का भविष्य TENSION , DEPRESSION , पारिवारिक क्लेश और असामयिक मृत्यु में गुज़र जाता है। केवल धन कमाने से ही सुख और शान्ति की प्राप्ति नहीं होती है ।
दूसरे प्रकार के वे लोग हैं जो दिन रात मेहनत और काम कर के भी अपने परिवार का भरण पोषण नहीं कर पाते हैं और उन्हें बार बार इस भ्रष्ट व्यवस्था में पैसे खिलाकर काम करवाना पड़ता है जो कि इनका बजट बिगड़ता है और ये अपने भविष्य के लिए कोई भी बचत नहीं कर पाते हैं बल्कि इनको बार बार अपने बच्चों का या अपना FUTURE प्लान बदलना पड़ता है । साथ ही इनको मालूम है कि आगे भी बरसों तक इनके पास कोई अतिरिक्त आय के SOURCES नहीं मिलने वाले हैं ऐसे लोग वर्तमान व्यवस्था के पूर्ण बदलाव के पक्षधर हैं ।
आज जो भी लोग इस भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं हम लोग उनका साथ देने की जगह उनके तर तरीकों और उनकी हैसियत पर बहस ज्यादा कर रहे हैं। आज़ादी के 65 सालों बाद पहली बार ऐसा मौका मिला है कि आज मैदान में 2-4 लोग दिखाई दे रहे हैं । ये काम मुश्किल ज़रूर है लेकिन असंभव नहीं ।आज सबके सामने ये प्रश्न है कि वो इसके साथ हों या विरोध में।क्या ये मेहनत सफल हो सकेगी या फिर वही ढाक के तीन पात ।
आपको क्या लगता है, कृपया अपने विचार यहाँ रखने का कष्ट करें।
Sunil_Telang /11/10/2012
आज जो भी लोग इस भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं हम लोग उनका साथ देने की जगह उनके तर तरीकों और उनकी हैसियत पर बहस ज्यादा कर रहे हैं। आज़ादी के 65 सालों बाद पहली बार ऐसा मौका मिला है कि आज मैदान में 2-4 लोग दिखाई दे रहे हैं । ये काम मुश्किल ज़रूर है लेकिन असंभव नहीं ।आज सबके सामने ये प्रश्न है कि वो इसके साथ हों या विरोध में।क्या ये मेहनत सफल हो सकेगी या फिर वही ढाक के तीन पात ।
आपको क्या लगता है, कृपया अपने विचार यहाँ रखने का कष्ट करें।
Sunil_Telang /11/10/2012
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