वैशाखियां
इस कदर उन की यहाँ तक बढ़ गईं गुस्ताखियाँ
छीन लीं विकलांगों की ज़िन्दगी वैशाखियां
उम्र भर मजबूरियों में रेंग कर चलते रहे
थीं अँधेरे रास्तों की रौशनी वैशाखियां
खो गई इंसानियत अब लाज है ना शर्म है
अब कमाई का बड़ा जरिया बनी वैशाखियां
वो सहारे छीन कर खुद बेसहारा हो रहे
देख लो सरकार की ज़रूअत बनी वैशाखियां
Sunil_Telang/12/10/2012
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