दो ग़ज़ ज़मीं
वो बड़े हैं तुम सड़क के आदमी
देखते रहते हो बस उनकी कमी
शोहरत छूती है उनकी आसमां
तुमको तो हासिल न हो पाई ज़मीं
जो बड़े हैं उनका आदर सीखिये
अपने लब ना खोलना है लाज़मी
जो उड़ा आकाश में इक दिन गिरा
अंत सबका है यही दो ग़ज़ ज़मीं
सुनील_तैलंग/23/10/2012
No comments:
Post a Comment