कब खुलेगी जुबां
जायें तो जायें इन्सां कहाँ
होगी सरकार कब मेहरबां
रोज़ी रोटी की हमको फिकर
जिसका कोई करे न ज़िकर
पार्टियों में बर्चस्व की
होड़ है बस यहाँ से वहाँ
रोज़ आपस में छींटाकशी
नेता करते हैं बस दिल्लगी
इनमे त्याग और ईमान का
रह गया अब न नाम ओ निशाँ
देश के ये प्रधानमंत्री
अपने ही देश में अजनबी
हो न पाये कभी रूबरू
कब खुलेगी ये उनकी जुबां
Sunil_Telang
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