अंज़ाम
ऐ गुनाहगारो , गुनाहों को ना यूँ अंज़ाम दो
अपनी वहशत और ज़िद को ना मोहब्बत नाम दो
जितना हक तुमको किसी को चाहने का है मिला
हक है उसको भी तुझे चाहे या तोड़े सिलसिला
उसकी नामर्ज़ी को मत तौहीन का इल्ज़ाम दो
ज़िन्दगी तो है खुदा की देन, तेरा हक है क्या
दिल पे खाकर चोट, क्यों हस्ती मिटाने पर तुला
अपने सीने में भड़कती आग को आराम दो
ये ख़ता तेरी, तुझे ही उम्र भर तड़पायेगी
साथ तेरे और कितनी जिन्दगीं मिट जायेंगीं
प्यार तो है त्याग और पूजा, यही पैग़ाम दो
Sunil _Telang/30/09/2012
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