आवारगी
बोझ से है भरी ज़िन्दगी
है किसी से डरी ज़िन्दगी
फिरते हैं लोग चारों तरफ
फिर भी है अजनबी ज़िन्दगी
खुद से भी कुछ पशेमां हैं हम
बन गयी बेबसी ज़िन्दगी
ढूंढती है ना जाने किसे
मेरी आवारगी ज़िन्दगी
उम्र गुजरी तड़पते हुए
आंसुओं की नदी ज़िन्दगी
जिसने जीता हो खुद को कभी
बस उसी को मिली ज़िन्दगी
(पशेमां -शर्मिंदा )
Sunil_Telang /17/09/2012
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