Kaalikhon ki kaalima charon taraf chhaane lagi hai
Sharm har ik shakhs ko is desh me aane lagi hai
कालिमा
Sharm har ik shakhs ko is desh me aane lagi hai
कालिमा
कालिखों की कालिमा चारों तरफ छाने लगी है
शर्म अब हर शख्स को इस देश में आने लगी है
क्या यही वो देश है जिस पर भुवन को नाज़ था
जो कला और सभ्यता में विश्व का सरताज था
लग गई किसकी नज़र जो कहर बरपाने लगी है
भूल कर बैठे उन्हें ये डोर शासन की थमा कर
हक़ जमा बैठे जो अपना देश की हर संपदा पर
असलियत अब देश को उनकी नज़र आने लगी है
अब रहा ना शर्म और इज्ज़त से कोई वास्ता
आम जनता को नहीं दिखता है कोई रास्ता
पांच बरसों की अवधि कुछ और तड़पाने लगी है
देखना बस ये घड़ा अब भर चुका है पाप का
एक दिन होगा असर उन पर दुआ और शाप का
जागरूकता की कवायद रंग अब लाने लगी है
Sunil_Telang/13/09/2012
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