दुआ
ना तो हैं कोई उमंगें, ना ख़ुशी का दौर है
साल आते हैं नये,ये साल कोई और है
किस कदर छाई हुई मनहूसियत इस रात में
कैसे कोई मुस्कुराये आज के हालात में
हर किसी को फ़िक्र कल की,बात काबिलेगौर है
होंठ देते हैं मुबारकबाद,दिल है ग़म ज़दा
ऐसा लगता है सभी पे आई है ये आपदा
एक स्थल पर जुटे हैं, अब कहीं ना ठौर है
शायद उसकी आत्मा को शान्ति मिल जायेगी
जश्न और खुशियाँ मनाने की घडी फिर आयेगी
आज पूरी हो दुआ तो बात ही कुछ और है
Sunil_Telang/31/12/2012
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