Saturday, December 22, 2012

AAKROSH


आक्रोश 

यूँ    तो    हैं   आक्रोश    में  दोनों   जहां 
सिलसिले थमते  नहीं  फिर  भी  यहाँ 

नारियां   बस   भोग्य  बस्तु  रह  गईं 
मानसिकता की विकृति सब कह गई  
क्या   पुरुष  के  दंभ  का  है  ये  निशां 

ये  दमन  का  चक्र  सदियों   से चला 
पर  पुरुष   को  दंड  ना   कोई  मिला 
रोज़   लिखते   हैं  नई    इक  दास्ताँ 

बेटियां, माँ  और बहन  हर  घर में  है 
आज क्यों गुमसुम सी इतने  डर में है 
देखता   कब    तक    रहेगा   नौजवां 

Sunil_Telang/22/12/2012




No comments:

Post a Comment