हर कोई स्तब्ध है, निःशब्द है, बेज़ार है
अब नतीजा ना मिला ,तो ज़िन्दगी बेकार है
अब न कोई दामिनी दुष्कर्म की वेदी चढ़े
हो व्यवस्था इस तरह ये पाप ना आगे बढे
संविधानों को बदल डालो अगर ये भार है
फिर नया इक हादसा ये देश ना सह पायेगा
बेबसी के आंसुओं में हर कोई बह जायेगा
है सबर की इन्तेहा अब देर ना स्वीकार है
उसकी कुर्बानी जेहन में आग इक सुलगा गई
जाते जाते हर किसी को रास्ता दिखला गई
अब अगर ये लौ बुझी तो हर किसी की हार है
Sunil_Telang/30/12/2012
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