बन्दगी
मोल अस्मत का है बस दो चार लम्हों की ख़ुशी
जाने किसको क्या मिला लेकर किसी की ज़िन्दगी
क्या खता थी जो हुये सपने सुहाने ग़मज़दा
लुट गयी खुशियाँ, न जाने चोट ये कैसी लगी
जिनके हाथों में नहीं , दे पायें जीने की ख़ुशी
उनको हक किसने दिया है वो मिटा दें ज़िन्दगी
ऐ खुदा उनको समझ दे बहशियत से जो घिरे
छीन कर खंज़र थमा दे उनको अपनी बन्दगी
Sunil _Telang /19/12/2012
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