क्या लिखें
क्या लिखें अब कलम खो गई है
चुप रहें , दामिनी सो गई है
भावनाओं का तूफां है उमड़ा
पर ज़ुबां बेज़ुबां हो गई है
एक माँ-बाप के जीते देखो
उन की बेटी जुदा हो गई है
संस्कारों को अब भूल जायें
राजनीति रवां हो गई है
लड़ते जाना ज़रूरी है लेकिन
सब की गैरत कहाँ सो गई है
Sunil_Telang/30/12/2012
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