ज़िक्र अपना रात दिन चलता रहेगा
गुमशुदा बचपन यूँ ही पलता रहेगा
हम गरीबों की प्रगति की आड़ लेकर
घर किसी का फूलता फलता रहेगा
दीवाली
मिल जायें जो दो रोटी तो अपनी दीवाली है
घर तुमने भरे होंगे ये पेट तो खाली है
क्या होती हैं ये खुशियां कैसे अभी बतलायें
हमने तो ग़मों में ही ये उम्र निकाली है
दीपों की चमक में ये रंगीन हुई दुनिया
पीछे भी जरा देखो तस्वीर ये काली है
रहते हैं अकेले हम त्यौहार हों या मेले
कहते हैं गरीबों की सरकार निराली है
है आसमां छत अपनी बिस्तर ये ज़मीं अपना
दुनिया से अलग हमने दुनिया ये बना ली है
Sunil_Telang/28/10/2013
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