दाग़
दाग़ लोगों के जो दिखाते है
अपनी तस्वीर को छुपाते हैं
वो भी इंसान हैं खुदा तो नहीं
बात इतनी सी भूल जाते हैं
नई शुरुआत से डर लगता है
तंत्र पर उंगलियाँ उठाते हैं
इस कदर भी गुरुर ठीक नहीं
दिन बहारों के भी रुलाते हैं
भीड़ से जो निकल के चलते हैं
अपनी तकदीर खुद बनाते हैं
Sunil_Telang/04/10/2013
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