क्यों भला हम सह रहे हैं ये शरारत बार बार
अब तलक दो सर कटे हैं और कितना इंतज़ार
हो नहीं सकती है ये नापाक हरकत भूल से
काफिले चलते नहीं हैं जो नियम और उसूल से
उनको कितनी बार माफ़ी, क्यों नहीं होता प्रहार
लाल खोये हैं जिन्होंने , ऐसी माँओं को नमन
गर्व करती हैं शहादत पर , नहीं कोई शिकन
कब कोई समझेगा उनके मन की पीड़ा एक बार
कब तलक बातों का मौसम , कब कदम होंगे कड़े
सैनिकों के वेश में ये आततायी हैं खड़े
अब सबक इनको सिखाओ चाहे रण हो एक बार
Sunil _Telang /10/01/2013
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