नया रास्ता
गर परेशां हैं, नये रस्ते पे चलिये
पार्टी कोई भी हो उसको बदलिये
अंध-भक्ति इतनी भी अच्छी नहीं
देख कर, सुन कर ,समझकर चाल चलिये
चार दिन की चांदनी की लालसा में
पांच बरसों तक ना यूँ दिन रात जलिये
अपनी ये कमजोरियां, ताक़त हैं उनकी
खींच कर बैशाखियाँ पाला बदलिये
इनका मकसद आपसी रंजिश बढ़ाना
अब तो मज़हब, जात से बाहर निकलिये
कद्र ना जन भावनाओं की करें जो
उनको चुनकर फिर ना ऐसे हाथ मलिये
Sunil _Telang /09/01/2013
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