तुमसे मैं कैसे करूँ गिला
तुम भी तो परेशां लगते हो
मुझको बेचैन किया तो क्या
तुम भी रातों को जगते हो
ये दिल तो सदा तुम्हारा था
इसको ठुकरा कर क्या पाया
अपने ही हाथों आग लगा
खुद भी दिन रात सुलगते हो
ये प्यार कुछ ऐसा जज़्बा है
जाने किस पर दिल आ जाये
तुम को भी चाह हमारी है
फिर दूर-दूर क्यों भगते हो
ये लाज शर्म, ये मजबूरीं
ये रस्में ,ज़माने के बंधन
जाने कितनी मुश्किल होंगी
तुम फिर भी अच्छे लगते हो
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