Monday, January 21, 2013

JAZBAA

जज़्बा 


तुमसे   मैं   कैसे  करूँ  गिला 
तुम  भी  तो परेशां  लगते हो 
मुझको बेचैन  किया तो क्या 
तुम भी  रातों  को  जगते  हो 

ये दिल तो  सदा  तुम्हारा  था 
इसको ठुकरा  कर  क्या पाया 
अपने  ही  हाथों  आग  लगा
खुद भी  दिन रात सुलगते हो 

ये प्यार  कुछ  ऐसा जज़्बा  है 
जाने किस पर दिल आ जाये 
तुम  को  भी चाह  हमारी  है 
फिर  दूर-दूर  क्यों  भगते हो 

ये   लाज   शर्म,  ये  मजबूरीं 
ये  रस्में ,ज़माने  के   बंधन 
जाने कितनी मुश्किल होंगी 
तुम फिर भी अच्छे लगते हो 

Sunil _Telang /18/01/2013










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