FIKRMAND
लोग कुछ ऐसे भी जीते हैं यहां
मुस्कुरा कर अश्क़ पीते हैं यहां
क्यों हुये अपने पराये , अपना ग़म
भूल कर दिन रात जीते हैं यहां
जब तलक है इनके बाज़ुओं में दम
हंस के अपने ज़ख्म सींते हैं यहां
कौन है जो इन पे डाले इक नज़र
हर तरफ बस लाल फीते हैं यहां
फिक्रमंद हैं जो गरीबों के लिये
क्यों खजाने उनके रीते हैं यहां
Sunil_Telang/26/12/2018