SARKAAR
बहुत बातें हुई लेकिन हक़ीक़त दूर लगती है
गरीबों के लिये सरकार क्यों मजबूर लगती है
परेशां ज़िन्दगी है पर जुबां पर लग गये ताले
नशा हो इश्क़ का तो फिर गधी भी हूर लगती है
फ़क़त वादे हैं सपने हैं मगर कुछ भी नहीं बदला
ग़मों की भीड़ है हरसू ख़ुशी काफूर लगती है
गरीबी भूख मंहगाई नहीं मुद्दे रहे कोई
मुई सरकार भी सत्ता के मद में चूर लगती है
Sunil_Telang
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