Friday, March 15, 2013

KEEMAT



कीमत 

हर    सुबह   अखबार   पढ़ते 
दिन   उगे  सूरज   के  चढ़ते 
कंपकंपाते    हाथ   क्यों   हैं  
चाय   की   प्याली   पकड़ते 

रोज़  ही  आती    है   अक्सर 
कुछ  खबर  ऐसी निकलकर
दिल  को  जो  झकझोरती है 
दिन निकलता खुद से लड़ते

आ  गये   हैं  हम   कहाँ   पर 
अपनी दिनचर्या में फंस कर 
देख   ना   पाये,  हैं   कितने 
लोग   चलते  गिरते    पड़ते 

जी   रही   जनता सिसकती  
ज़िन्दगी   से  मौत   सस्ती 
नारियां  हैं   इक   खिलौना 
बिक   गया  है  तंत्र   सड़ते 

सिर्फ   टीवी    फेसबुक  पर 
प्रतिक्रियायें    रोज़    देकर 
रोक    हम    पायेंगे    कैसे 
देश   का   आलम  बिगड़ते 

अपने  मन  में  ठान लो अब 
खुद की कीमत जान लो अब 
एक    दिन   देखोगे तुम भी 
भ्रष्ट   शासन  को   उखड़ते 

Sunil_Telang/15/03/2013 






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