कैसा क़ानून
कैसा क़ानून
इक तरफ क़ानून की रक्षा में जां कुर्बान है
इक तरफ वर्दी के मद में चूर ये इंसान है
जब कोई रक्षक बने भक्षक तो इन्सां क्या करे
कैसे कोई अब यकीं क़ानून पर पैदा करे
जायें तो जायें कहाँ अब मुश्किलों में जान है
क्या कहीं वर्दी को हमने ज़ुल्म का हक दे दिया
क्या कहीं दूषित हुई इनके चयन की प्रक्रिया
या फकत सिक्कों की खातिर बिक गया ईमान है
होगी इनकी भी कहीं पर माँ बहन और बेटियाँ
किसलिये फिर बेबसों पर सेंकते हैं रोटियाँ
क्या गुनहगारों की भी इनको नहीं पहचान है
Sunil_Telang/05/03/2013
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