Main koi kavi ya shaayar nahin hoon, Bus jo bhi apne aas paas dekhta hoon ya apne saath ghat raha hai, usko shabdon me dhaalne ki koshish karta hoon.
Wednesday, December 30, 2015
Thursday, November 26, 2015
NAYE SAPNE
NAYE SAPNE
नये सपने सजायें , अपने कुछ अंदाज़ को बदलें
बदल जायेगा अपना कल अगर हम आज को बदलें
वतन अपना है हिन्दुस्तां तो हिन्दू और मुस्लिम क्या
यहां इंसानियत से बढ़ के ना हो फिर कोई जज़्बा
बनायें कुछ नये ऐसे तराने , साज़ को बदलें
जहां में प्रेम हो, सदभाव हो और भाई चारा हो
रहे अब ना कोई भूखा न कोई बेसहारा हो
करें मेहनत सफल अंजाम तक, आग़ाज़ को बदलें
किसी ने क्या कहा. किसको कहा. क्या फर्क पड़ता है
समर जीवन का हर इंसान अपने दम पे लड़ता है
अगर छूना है हमको आसमां, परवाज़ को बदलें
Sunil_Telang/ 26/11/2015
Saturday, November 7, 2015
Sunday, September 13, 2015
SUBAH
SUBAH
सुबह तो रोज़ आती है
सदा हंसती है गाती है
तेरी मुस्कान से ही तो
ये दुनिया मुस्कुराती है
जो होना है वो होना है
ये किस्मत का लिखा तय है
तुझे क्यों रात दिन चिंता
ज़माने की सताती है
चले पंछी नये पथ पर
फ़िकर है आबो-दाने की
कोई तूफां कोई मुश्किल
ना उनको रोक पाती है
उमंगों से तू दिल भर ले
कदम तू भी बढ़ाता चल
जो ग़म से ना डरा दुनिया
उसी के गीत गाती है
Sunil_Telang/13/09/2015
Wednesday, August 12, 2015
MAUSAM
MAUSAM
हर तरफ हैं बस वही ग़म के फ़साने
अब कहां वो खो गये मौसम सुहाने
उन के आने से तो ना आना ही अच्छा
दिल दुखाते और पुर्सिश के बहाने
हर तरफ हावी है बस मतलब परस्ती
अजनबी से हो गये अपने बेगाने
जब भी होता है कलंकित कोई दामन
दूसरों के पाप लगते हैं गिनाने
गुमशुदा सी हो गई ईमानदारी
हर कोई बैठा है सच को आजमाने
अपने ही घर में हुये जैसे पराये
देश की खातिर मिटे हैं जो दिवाने
Sunil_Telang/12/08/2015
Thursday, July 30, 2015
Wednesday, July 22, 2015
HUM TO BUS CHUP HI RAHENGE
HUM TO BUS CHUP HI RAHENGE
जब तलक खुद पे ना बीते हम तो बस चुप ही रहेंगे
कोई हारे कोई जीते हम तो बस चुप ही रहेंगे
आना जाना जीना मरना रोज़ की हैं आम बातें
उम्र गुज़री जेब सींते हम तो बस चुप ही रहेंगे
पांच बरसों तक उन्हें ये राज हमने ही दिया है
काटने दो उनको फीते हम तो बस चुप ही रहेंगे
हमको रोटी की फिकर उनको भी है कुर्सी की चिंता
अपने अपने हैं सुभीते हम तो बस चुप ही रहेंगे ( सुभीते - Comforts , Conveniences )
हो गया है खून पानी घर से बाहर कौन निकले
आप बन जायें पलीते हम तो बस चुप ही रहेंगे ( पलीते - Exploders )
Sunil_Telang/22/07/2015
Sunday, July 12, 2015
KAWAAYAD
कवायद
किसी की जान पर बन आई हम बस इक खबर समझे
उसी ने राह भटकाई जिसे हम राहबर समझे
खड़ा होने भी दो अपने ही दम पे नौनिहालों को
बिना मेहनत नहीं होती है दुनिया में बसर समझे
उड़ा कोई नहीं पंछी बिना पंखों को फैलाये
समझ आ जायेगी ये बात भी सबको अगर समझे
नतीजा अपने कर्मों का तुझे खुद ही भुगतना है
हमेशा जीत सच्चाई की ही होगी मगर समझे
करो उनका नमन सर पे कफ़न लेकर चले हैं जो
कवायद न्याय पाने की न अब हो बेअसर समझे
Sunil _Telang / 12/07/2015
Thursday, July 9, 2015
MAALOOM
MAALOOM
किसी रंजिश का जैसे सिलसिला मालूम होता है
कि तू मुझ सा है फिर भी दूसरा मालूम होता है
कहाँ से लाये हो अंदाज़ इतने मुस्कुराने के
तुम्हारा दिल मुझे टूटा हुआ मालूम होता है
मैं इस आलम-ए-तन्हाई में भी तन्हा नहीं ऐ दोस्त
मुझे हर एक आंसू आशना मालूम होता है
ज़रा तबियत से देखो तो खुदा बन्दे के अंदर है
खुदा का नाम लेने भर से क्या मालूम होता है
न जाने किसकी उल्फत में हुये हालात इस दर्जा
कि सब-मालूम ना-मालूम सा मालूम होता है
( N M ) /09/07/2015
Saturday, July 4, 2015
Tuesday, June 30, 2015
HAUSLA
HAUSLA
हौसला लड़ने का खो बैठे हैं हम
इसलिये चारों तरफ मिलते हैं ग़म
हो रहा अच्छा बुरा होने भी दो
खुद पे गुज़रेगी तभी जागेंगे हम
रास्ता कैसे तुझे दिखलायेंगे
साथ चलते भी नहीं जो दो कदम
मुश्किलों में साथ ना देगा कोई
दूर कर ले आज ये अपना भरम
ज़िन्दगी तो नाम है संघर्ष का
कर दे नामंज़ूर दुनिया के अलम
(अलम- Grief )
Sunil _Telang /30/06/2015
Sunday, June 28, 2015
SABOOR
SABOOR
दिन ढलेगा, रात होगी, सुबह भी होगी ज़रूर
तू ना हिम्मत हारना चाहे तेरी मंज़िल है दूर
कौन है जिसका मुसीबत से हुआ ना सामना
रुक गये तेरे कदम तो होगा ये तेरा कुसूर
आग में तपकर ही बढ़ पाती है सोने की चमक
तेरी मेहनत और लगन लायेगी चारों ओर नूर
अपनी हस्ती से खफा होता है क्यों तू बारहा
तुझमें भी है कुछ अलहदा बात ये समझो हुजूर
ज़िन्दगी में जो भी पाया कर खुदा का शुक्रिया
चैन उसको ही मिला है जो जिया बन के सबूर
(बारहा -Often, अलहदा-Different, सबूर - Patient)
Sunil_Telang/28/06/2015
Friday, June 19, 2015
AITBAAR
ऐतबार
ज़िक्र खुशियों का बार बार करें
कुछ ग़मों से भी मगर प्यार करें
जो मिला तुझ को तेरी किस्मत है
रश्क़ क्यों दूसरों से यार करें
वक़्त तो हर घडी मुनासिब है
लोग क्यों रोज़ इन्तज़ार करें
गर ज़माने को कुछ बदलना है
अपनी आदत में भी सुधार करें
मंज़िलें भी उन्हीं को मिलती हैं
जो सदा खुद पे ऐतबार करें
Sunil_Telang/19/06/2015
Saturday, June 13, 2015
APNA PARAAYA
अपना पराया
किसे अपना कहें, किसको पराया
मुसीबत में, न कोई काम आया
मिले हम तो सभी से मुस्कुराकर
ज़माने ने हमें दुश्मन बनाया
मिला जो भी खुशी से भर ली झोली
कभी लब पर कोई शिकवा न आया
लिखा किस्मत में जो, हो कर रहेगा
ये कल की फ़िक्र में क्यों जी जलाया
हज़ारों इम्तेहां हैं ज़िन्दगी में
जिया वो, ग़म में भी जो मुस्कुराया
Sunil _Telang /13/06/2015
Sunday, May 31, 2015
CHUP BHI KAR
CHUP BHI KAR
लोग कहते हैं मुझ से चुप भी कर
शुक्र कर ले बचा है तेरा घर
उनकी किस्मत खराब थी शायद
जिनपे ढाया खुदा ने आज कहर
तेरी फ़रियाद कौन समझेगा
कुछ वज़न रख के देख कागज़ पर
ग़म हैं लाखों, खुशी नहीं मिलती
ज़िन्दगी मौत से हुई बदतर
बात उस से ज़मीं की मत करना
उसकी नज़रें हैं चाँद तारों पर
अब तो रब भी करम नहीं करता
आह में अब नहीं रहा वो असर
Sunil_Telang/31/05/2015
Friday, May 29, 2015
SAAHIR
SAAHIR
लोग कुछ ऊपर उठे लेकिन नज़र से गिर गये
भूल कर वादे सभी वो भी जुबां से फिर गये
जिनको फुर्सत ही नहीं, देखें बुरा अच्छा है क्या
दिन ब दिन वो सर उठाती मुश्किलों में घिर गये
भाईचारा और मोहब्बत लोग वो सिखला गये
जो न मस्ज़िद देख पाये ना कभी मंदिर गये
नाम उनका भी किताबों से जुबां पर लाइये
अपनी आज़ादी की खातिर जो कटा के सिर गये
चाहिये लोगों को क्या, इतना समझ पाये नहीं
रास्ते से जाने कितने चारागर, साहिर गये
( चारागर- Doctor , साहिर- Magician, Enchanter)
Sunil_Telang/29/05/2015
Saturday, May 16, 2015
ASAR
ASAR
आँखों पर परदे पड़े हैं कुछ नज़र आता नहीं
है अभी भी बुतपरस्ती का असर,जाता नहीं
लोग चलते जा रहे हैं मंज़िलों की आस मैं
गाँव भी छूटा, मगर कोई शहर आता नहीं
हर गली चौराहों को करते रहे रोशन मगर
राह ये कैसी चुनी है अपना घर आता नहीं
ताज पाकर आसमां में रोज़ जो उड़ता रहा
एक दिन गिरना है तय ये कोई समझाता नहीं
कब तलक जीये हकीकत से कोई मुंह मोड़कर
हमको ग़म में मुस्कुराने का हुनर आता नहीं
Sunil_Telang/16/05/2015
Wednesday, April 29, 2015
GUZRA ZAMAANA
GUZRA ZAMAANA
चलो कुछ बात करलें आज फिर गुज़रे ज़माने की
कभी हमको भी थी आदत हमेशा मुस्कुराने की
सुबह और शाम अक्सर दोस्तों से रोज़ मिलते ही
रसोई घर में जाकर ढूँढना कुछ चीज़ खाने की
न तेरा कुछ, न कुछ मेरा, मिले जो बाँट कर खाना
बड़े कुनबे से ही, रहती थी रौनक, आशियाने की
दबाना पाँव दादी के, मिले कुछ जेब का खर्चा
बड़ी कीमत हुआ करती थी पहले एक आने की
समय बदला, हुये अपने पराये , लोग पढ़ पढ़ कर
बनी मोबाइल और टीवी की आदत दिल लगाने की
गया जो वक़्त,अच्छा या बुरा था,सोचना अब क्या
बनायें मुस्कुराहट को दवा, हर ग़म भुलाने की
Sunil_Telang/29/04/2015
Tuesday, April 21, 2015
ZAKHM
ज़ख्म
अभी तक कुछ नहीं बदला सिवा तारीख और दिन के
अँधेरी रात कटती है सितारे रोज़ गिन गिन के
नई उम्मीद थी , कितने नये अरमान थे दिल में
हुये वो अजनबी हम भी कभी शैदाई थे जिनके
सितम ये है यहां लूटा है अपनों ने वतन अपना
मुसाफिर खाने जैसे हो गये घर बार साकिन के
छुपाये बैठे हैं दिल में हज़ारों ज़ख्म जो अब तक
बनेंगे एक दिन तूफां इन्हें समझो नहीं तिनके
Sunil_Telang / 21/04/2015
Sunday, March 29, 2015
THIKAANA
THIKAANA
ज़रूरी तो नहीं जो चाहते हों हम, वही पायें
मिले थोड़ा बहुत जो भी, उसी को हँस के अपनायें
रहेंगी ख्वाहिशें बाकी तेरी ताउम्र मरने तक
जो अपने पास है, काफी है अपने दिल को समझायें
मुसीबत में जो अपने हैं, नहीं अपने तेरे होंगे
ये दौलत, ये खजाने किस लिये भरते चले जायें
सुना है रब का होता है ठिकाना, दीन दुखियों में
मिटाकर झोपडी, ऊंचे महल क्यों लोग बनबायें
जिया औरों की खातिर जो, करेगा नाम दुनिया में
मिली है चार दिन की ज़िंदगी, मिल बाँट कर खायें
Sunil _Telang/29/03/2015
Wednesday, March 18, 2015
DEKHTE RAHIYE
देखते रहिये
बहुत कुछ हो रहा है देश मेँ , लेकिन न कुछ कहिये
यही अच्छा है अब आँखों को रखिये बंद , चुप रहिये
मुसीबत मेँ अगर हैं अन्नदाता तो तुझे क्या है
अभी किरकिट का मौसम है तमाशा देखते रहिये
चला जो लीक से हट के वो अपनी जां लुटा बैठा
ये रोना दो घडी का है यूँ जज़्बातों में ना बहिये
बड़ी उम्मीद से हमने बिठाया है उन्हें सर पर
मिलेगा चैन भी शायद अभी कुछ दर्द ही सहिये
Sunil_Telang/18/03/2015
Friday, February 27, 2015
BADLAAV
BADLAAV
हो अगर बदलाव की ख्वाहिश तो खुद को भी बदलिये
खोल कर दिल के दरीचे इक नये रस्ते पे चलिये
आये कितने चारागर पर मर्ज़ ना समझा कोई भी
लुट रही तेरी विरासत , सोचिये, अब तो संभलिये
क्या नहीं तुझको रही पहचान अब अच्छे बुरे की
सिर्फ चेहरा देख कर मत गिरगिटी रंगों में ढलिये
जल रहा है ये जहां कब तक रहे मह्फूज़ दामन
सिर्फ बातों से नहीं कुछ पाओगे ,घर से निकलिये
Sunil_Telang/ 28/02/2015
Friday, January 9, 2015
NUKTA CHEENI
NUKTA CHEENI
क्यों तुझे आती हँसी हर बात पर
नुक्ताचीनी छोड़, अपना काम कर
जाति मज़हब पर सदा उलझे रहो
भूख मंहगाई गरीबी भूलकर
दुश्मनों की दोस्ती भाने लगी
राजनीति का यही तो है हुनर
क्या कहा और क्या किया मत पूछना
झूठे वादों का न लब पे ज़िक्र कर
हादसों का क्या ये दुनिया है बड़ी
हर खबर से खुद को कर ले बेखबर
छोड़ दे अच्छे दिनों का इंतज़ार
छोड़ दे अच्छे दिनों का इंतज़ार
बीत जायेगी तेरी सारी उमर
Sunil_Telang/09/01/2015
Sunil_Telang/09/01/2015
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