Sunday, June 28, 2015

SABOOR


SABOOR

दिन ढलेगा,  रात होगी,  सुबह भी  होगी ज़रूर 
तू ना हिम्मत हारना  चाहे तेरी  मंज़िल है  दूर 

कौन है  जिसका  मुसीबत से हुआ ना सामना 
रुक  गये  तेरे  कदम  तो  होगा ये  तेरा  कुसूर  

आग में तपकर ही बढ़ पाती है सोने की चमक  
तेरी मेहनत और लगन  लायेगी चारों ओर नूर

अपनी हस्ती से  खफा  होता है क्यों  तू  बारहा 
तुझमें भी है कुछ अलहदा बात ये समझो हुजूर 

ज़िन्दगी में जो भी पाया कर खुदा का शुक्रिया 
चैन उसको ही मिला है  जो जिया बन के सबूर 

(बारहा -Often, अलहदा-Different, सबूर - Patient)

Sunil_Telang/28/06/2015

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