Saturday, May 16, 2015

ASAR



ASAR 

आँखों  पर  परदे पड़े हैं कुछ नज़र आता नहीं 
है  अभी  भी बुतपरस्ती  का असर,जाता नहीं 

लोग चलते जा  रहे  हैं  मंज़िलों  की  आस मैं 
गाँव   भी छूटा, मगर  कोई  शहर आता  नहीं

हर  गली  चौराहों  को  करते  रहे रोशन मगर 
राह ये  कैसी  चुनी  है अपना  घर  आता नहीं 

ताज  पाकर  आसमां  में  रोज़ जो  उड़ता रहा 
एक दिन गिरना है तय ये कोई समझाता नहीं 

कब तलक जीये हकीकत से कोई मुंह मोड़कर 
हमको ग़म  में मुस्कुराने का  हुनर आता नहीं 

Sunil_Telang/16/05/2015











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