Wednesday, April 29, 2015

GUZRA ZAMAANA



GUZRA ZAMAANA

चलो कुछ बात करलें आज  फिर गुज़रे ज़माने की 
कभी हमको भी थी आदत  हमेशा  मुस्कुराने  की 

सुबह और शाम अक्सर दोस्तों से रोज़  मिलते ही 
रसोई घर  में  जाकर  ढूँढना  कुछ  चीज़  खाने की 

न तेरा कुछ, न कुछ मेरा, मिले जो  बाँट कर खाना 
बड़े  कुनबे से  ही, रहती  थी रौनक, आशियाने की 

दबाना  पाँव  दादी  के, मिले  कुछ  जेब  का  खर्चा 
बड़ी  कीमत  हुआ  करती  थी  पहले एक आने की 

समय बदला, हुये अपने पराये , लोग  पढ़ पढ़  कर
बनी मोबाइल और टीवी की आदत दिल लगाने की 

गया जो वक़्त,अच्छा या बुरा था,सोचना अब क्या 
बनायें  मुस्कुराहट  को  दवा, हर  ग़म  भुलाने  की    

Sunil_Telang/29/04/2015






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