भंवर
इस कदर डूबा, निराशा के भंवर में आदमी
हैसियत खो बैठा,अपनी ही नज़र में आदमी
बस ये कर बैठा यकीं, अब कुछ नहीं हो पायेगा
कितनी बेबस हो के सबकी, ज़िन्दगी चलती यहाँ
जब उठी आवाज़ कोई ,तो तुझे लगती यहाँ
व्यर्थ की रस्साकशी , अब कुछ नहीं हो पायेगा
देखता है रोज़ , अपने लूटते हैं तेरा हक़
हाल तेरा पूछने, आया ना कोई अब तलक
ग़म में डूबी ज़िन्दगी, अब कुछ नहीं हो पायेगा
पूछ खुद से एक दिन, क्या है नहीं तेरी खता
तूने समझी वोट की कीमत कभी, तू ही बता
फिर ना कहना तू कभी, अब कुछ नहीं हो पायेगा
वक़्त आया है तू अब, अच्छे बुरे को जान ले
तेरे ग़म में कौन होगा हमसफ़र, पहचान ले
देखना फिर एक दिन ,सब कुछ यहीं तू पायेगा
Sunil_Telang/06/06/2013
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