सुनवाई
अब डराने लगे पेज अखबार के
टेलीवीज़न की हर न्यूज़ से लगता डर
हो गया है पतन कितना इंसान का
आ गई शक की नज़रों में सबकी नज़र
कितने मासूम बचपन जवां ना हुये
कुछ दरिंदों का कैसा ये टूटा कहर
खौफ के साये में जी रही ज़िन्दगी
रात का हो समय या सुबह दोपहर
आम लोगों की सरकार का राज है
फिर भी तेरी नहीं है किसी को फिकर
तेरी सुनवाई कोई ना होगी कहीं
तेरी हस्ती नहीं ख़ास है कुछ अगर
Sunil _Telang /23/04/2013
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