Tuesday, February 12, 2013

PATAN



पतन 

आदमी  का कहाँ तक, हुआ  है पतन 
उसका बस जो चले, बेच  डाले वतन 

भूल   बैठा   है   इंसान  अपना  करम 
सिर्फ  पैसा  बना  आज उसका धरम 
बेच कर अपना ईमां, कमाता  है धन 

अब तो  क़ानून का भी कोई  डर नहीं 
भ्रष्ट लोगों का गठजोड़  है  हर  कहीं 
बच ना पाये कोई लाख कर ले  जतन 

कलयुगी दौर  में  सद्पुरुष  अब  कहाँ 
जो   बचे   हैं  उन्हें   काटता  ये   जहां 
काम करते हैं वो मार कर अपना मन 

बैठ  जाना  नहीं, यूँ  ही  थक  हार कर 
आज  लड़ना  ज़रूरी  है  हो  के  निडर 
रख  यकीं , देश फिर से बनेगा चमन 

Sunil _Telang /12/02/2013










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