Saturday, February 2, 2013

KAUN HAI APNA



कौन है अपना 

रास्ते  आसान  थे  मुश्किल  बना  बैठे  हैं   हम 
कश्तियों  को छोर  से  तूफाँ  में ला बैठे  हैं  हम 

रहनुमा जो भी मिला बस उसके पीछे चल दिये 
पा  लिये  हमने  मकां  पर घर भुला बैठे  हैं हम 

आधुनिकता  की  ये अंधी  दौड़, ये  शहरीकरण 
गाँव   की  पगडंडियों  से  दूर  जा  बैठे   हैं   हम 

दो  घडी  ना  पूछ  पाये  हाल  अपनों  का  कभी 
सिर्फ  पैसों   के  लिये  रिश्ते  भुला  बैठे  हैं  हम 

हो   रही    हैं   दूर   औलादें,  जुदा   माँ   बाप   हैं 
आशियाँ  परदेश   में   अपने  बना  बैठे  हैं   हम 

कौन  है  अपना  यहाँ   अपने  हुये   हैं  अजनबी 
ज़िन्दगी  किस  मोड़  पर ये आज ला बैठे हैं हम 

Sunil _Telang /02/02/2013





No comments:

Post a Comment