कीमत
अब कोई कीमत रही ना आदमी की जान की
मर गई इंसानियत, हरकत है ये शैतान की
एक छोटी सी खता पे मिट गयी इक ज़िन्दगी
बूढी आँखों में चिता जलती रही अरमान की
आ गये हैं हम कहाँ खुदगर्ज़ियों के दौर में
भावना कोई बची ना अब किसी सम्मान की
चैन ना मिल पायेगा इन कलयुगी संतानों को
हैं यही माता पिता मूरत किसी भगवान की
Sunil _Telang/27/02/2013
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