Friday, August 30, 2013

ZARA PEHCHAAN


ज़रा पहचान 

कदम ना डगमगा जायें, तुम्हें खुद ही संभलना है 
अगर मंजिल को पाना है तो मिल कर साथ चलना है 

ना कोई हो बड़ा छोटा, मिले सबको बराबर हक 

रहें भयमुक्क्त, बस ये ख्वाब अब आँखों में पलना है 

उन्हें पैंसठ बरस के बाद अब तेरा ख़याल आया 

वही मौकापरस्ती फिर ,व्यवस्था ये बदलना है

तेरे दुःख दर्द सुनने की जिन्हें फुर्सत नहीं मिलती  
तुझे बस वोट जो समझें ,उन्हें अब हाथ मलना है  

ज़मीं अपनी, वतन अपना, मगर क्यों तू पराया है 
ज़रा पहचान अपनों को, न अब तुझको फिसलना है 

Sunil_Telang/30/08/2013


 

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