काश ऐसा होता
तरसता है बहुत ये दिल
मिले ऐसा जहां कोई
जहां हर शाम सुबहा हो
ख़ुशी के रंग में खोई
ना कोई हो बड़ा छोटा
अमीरी ना गरीबी हो
मिले दो वक़्त की रोटी
बना हो आशियाँ कोई
न झगडा जात धर्मों का
न रिश्वत का चलन कोई
फरेब और झूठ का दिल में
न हो नाम-ओ-निशाँ कोई
कभी कुछ वक़्त मिल जाये
पुराने संगी साथी हों
करें फिर याद बचपन की
सुनायें दास्ताँ कोई
ज़माना आधुनिकता का
ये कैसा आ गया भाई
बने सब बोझ अपने भी
नहीं अब मेहरबां कोई
Sunil_Telang/22/08/2013
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