जिम्मेदारी
बना के रोज़ इक मुद्दा,बहस का खेल जारी है
हुए सब व्यस्त चर्चा में , जुनूँ सा एक तारी है
कहीं वर्चस्व का झगडा, कहीं हैं धर्म की बातें
गरीबी, भूख हैं गायब , कहाँ बेरोज़गारी है
कहीं कुदरत कहर ढाती, कहीं वीरान है बस्ती
कहीं दुश्चक्र में फंस कर हुई कुर्बान नारी है
वही आरोप प्रत्यारोप में गुज़रेगा ये दिन भी
तमाशा देखना हर रोज़ मजबूरी हमारी है
कभी बेबस,बेचारों की हकीकत भी समझ लेना
वही ग़लती न दोहरायें,ये सबकी जिम्मेदारी है
Sunil_Telang/01/08/2013
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