दिन ब दिन
दिन ब दिन वो दूर होते जा रहे हैं
ज़ख्म ये नासूर होते जा रहे हैं
एक तरफा इश्क की आदत बुरी है
दिल से क्यों मजबूर होते जा रहे हैं
दो घडी अपना बना के भूल जाना
इश्क के दस्तूर होते जा रहे हैं
छोड़ दी उम्मीद अब अहदे वफ़ा की
ग़म हमे मंज़ूर होते जा रहे हैं
चैन आये, कुछ खबर उनकी मिले अब
रात दिन बेनूर होते जा रहे हैं
Sunil_Telang/13/08/2013
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