Monday, September 16, 2013

SOCH



सोच 

जो  लोग अपने  घर से बाहर नहीं निकलते
देखेंगे   कैसे  अपनी   तकदीर   को  बदलते 

ग़म  को  छुपाते  रहते  हैं  ओढ़ कर मुखौटे  

कटते हैं रात और दिन गिरते कभी सँभलते 

हर  रोज़ की बहस का अंजाम कुछ नहीं है

घर   में  रहेंगे  टी वी चैनल  को बस बदलते 

जो  सोचते  हैं  अक्सर  होता नहीं  है वैसा 

रह   जाते  हैं  अधूरे  आँखों  में ख्वाब पलते

बदलोगे सोच अपनी दुनिया बदल सकोगे 

कुछ कह रही है तुझसे  ये  रात ढलते ढलते 

Sunil_Telang/16/09/2013



















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