सोच
जो लोग अपने घर से बाहर नहीं निकलते
देखेंगे कैसे अपनी तकदीर को बदलते
ग़म को छुपाते रहते हैं ओढ़ कर मुखौटे
कटते हैं रात और दिन गिरते कभी सँभलते
हर रोज़ की बहस का अंजाम कुछ नहीं है
घर में रहेंगे टी वी चैनल को बस बदलते
जो सोचते हैं अक्सर होता नहीं है वैसा
रह जाते हैं अधूरे आँखों में ख्वाब पलते
बदलोगे सोच अपनी दुनिया बदल सकोगे
कुछ कह रही है तुझसे ये रात ढलते ढलते
Sunil_Telang/16/09/2013
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