खंजर
ये कैसी रहगुज़र पर लोग चलते जा रहे हैं
हवा के साथ रुख अपना बदलते जा रहे हैं
न कोई नक़्शे-पा है, ना कहीं पर राहबर कोई
भटक के रास्तों से हाथ मलते जा रहे हैं
यकीं किस पर करें,ये मज़हबी मौकापरस्ती है
तेरे बनकर तेरा दिल लोग छलते जा रहे हैं
मिटेगा सिर्फ इन्सां,चाहे हिन्दू या मुसलमां हो
अमन के नाम पर खंजर निकलते जा रहे हैं
हुकुमरानों को फिर इक बार तेरी याद आई है
तेरा ग़म देख , उनके दिल पिघलते जा रहे हैं
Sunil_Telang/17/09/2013
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