Tuesday, September 24, 2013

HUNAR


हुनर

बहुत  खुश-रंग  अन्धेरे हैं जो  लगते  सहर हमको 
सताते   हैं अधूरे  ख्वाब अक्सर  रात  भर  हमको 

चला  आया  है लेकर  नाखुदा  मंझधार  में  कश्ती 
कोई  उम्मीद  बचने  की  नहीं  आती नज़र हमको 

वही   मौकापरस्ती   है   बदलता    है  जुबां अपनी 
यकीं  आता  नहीं   तेरी  किसी भी बात पर हमको 

लहू    के   रंग    में   डूबी    हुई   बदहाल  ये  बस्ती 
दवा   के  नाम  पर  ये  चारागर  देते  ज़हर हमको 

नहीं  उम्मीद  अब कोई यहाँ  जीना हुआ मुश्किल  
कोई सिखला दे ग़म में मुस्कुराने का हुनर हमको 


( सहर-Morning, नाखुदा-Boatman, चारागर -Doctor)

Sunil_Telang/24/09/2013





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