अंजाम
शहादत तेरी इक तमाशा बनी
भुला बैठे हैं सब तेरे नाम को
नुमाइंदगी ये नई नस्ल की
ना देखेगी गुजरी हुई शाम को
ना जज़्बात हैं ना जुनूँ रह गया
हुई सबको बस अपनी अपनी फिकर
वतन लुट रहा है तो लुटता रहे
नहीं छोड़ पाते हैं आराम को
मिली हमको आज़ादी गैरों से, अब
यहाँ राज कहने को अपनों का है
अभी तुझको लेना है फिर से जनम
कवायद ये पहुंचेगी अंजाम को
Sunil_Telang/28/09/2013
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