Wednesday, November 21, 2012

SUBAH O SHAAM



सुबह ओ शाम

क्या क्या खयाल  जी से गुज़रते  हैं सुबह ओ शाम 
कुछ  ज़ख्म नये दिल में उभरते हैं सुबह ओ शाम 

सदियाँ गुज़र गई हैं तुम्हें बा-वफ़ा हुये
हम याद तुम्हें आज भी करते हैं सुबह ओ शाम 

रह रह के ,चौंक चौंक के ,मैं नींद से जागूं
सज सज के मेरे सपने बिखरते हैं सुबह ओ शाम 

जब जब तेरी यादों की घटा दिल पे छाई है
आँखों से अश्क बरसा  करते  हैं सुबह ओ शाम

पल पल मैं देखता हूँ तेरी राहगुज़र को
तेरी झलक को तरसा  करते हैं सुबह ओ शाम

इक बार छुआ था तेरे फूलों से बदन को
खुशबू से तेरी महका करते हैं सुबह ओ शाम 

Sunil_Telang/21/11/2012


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