क्या क्या खयाल जी से गुज़रते हैं सुबह ओ शाम
कुछ ज़ख्म नये दिल में उभरते हैं सुबह ओ शाम
सदियाँ गुज़र गई हैं तुम्हें बा-वफ़ा हुये
हम याद तुम्हें आज भी करते हैं सुबह ओ शाम
रह रह के ,चौंक चौंक के ,मैं नींद से जागूं
सज सज के मेरे सपने बिखरते हैं सुबह ओ शाम
जब जब तेरी यादों की घटा दिल पे छाई है
आँखों से अश्क बरसा करते हैं सुबह ओ शाम
पल पल मैं देखता हूँ तेरी राहगुज़र को
तेरी झलक को तरसा करते हैं सुबह ओ शाम
इक बार छुआ था तेरे फूलों से बदन को
खुशबू से तेरी महका करते हैं सुबह ओ शाम
Sunil_Telang/21/11/2012
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