Thursday, November 29, 2012

IK BAAR UNHEN BHI DEKHO





इक बार उन्हें भी देखो 

हमने अपने शौक में ही ज़िन्दगी ये गुज़ार दी 
दो पलों की भी ख़ुशी ना बाँट कर इक बार दी 

रौशनी से जगमगाते रह गये  चौराहों को 
घर के कोने की अँधेरी कोठरी तो बिसार दी 

वक़्त की रंगीनियों में डूब कर हम रह  गये  
भूल बैठे उन को जिसने दुनिया हम पे वार दी 

बेरुखी से भी ना आई उनके माथे पर शिकन 
जीत की ख्वाहिश में अपनी  जिंदगी खुद हार दी 

उनको ठुकरा कर ना जीतेजी कभी मारो उन्हें 
सौ बरस तक जीने की जिसने दुआ हर बार दी 

Sunil_Telang/29/11/2012











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