इक बार उन्हें भी देखो
हमने अपने शौक में ही ज़िन्दगी ये गुज़ार दी
दो पलों की भी ख़ुशी ना बाँट कर इक बार दी
रौशनी से जगमगाते रह गये चौराहों को
घर के कोने की अँधेरी कोठरी तो बिसार दी
वक़्त की रंगीनियों में डूब कर हम रह गये
भूल बैठे उन को जिसने दुनिया हम पे वार दी
बेरुखी से भी ना आई उनके माथे पर शिकन
जीत की ख्वाहिश में अपनी जिंदगी खुद हार दी
सौ बरस तक जीने की जिसने दुआ हर बार दी
Sunil_Telang/29/11/2012
No comments:
Post a Comment