कैसे रिश्ते
वक़्त हर रिश्ते को कैसे, अजनबी सा कर गया
भूल कर अपनों को, कुछ गैरों को अपना कर गया
ये हवा आई कहाँ से, टिमटिमाते हैं दिये
रौशनी से जगमगाता घर अन्धेरा कर गया
ये अहम् की थी लड़ाई या कोई दौर-ए-खिजां
जो बहारों में चमन को पल में सेहरा कर गया
अपनी ढपली, राग अपना, अपने अपने रास्ते
क्या मिलेंगे, अब तो पानी सर से भी ऊपर गया
उम्र भर जीते रहे अपने लिये तो क्या जिये
जो जिया औरों की खातिर बस वही जी कर गया
दूरियां इतनी भी ना हों जब कोई अपना कहे
हमको क्या, शायद कहीं पर शख्स कोई मर गया
Sunil_Telang/27/11/2012
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