गुज़र गई दीवाली
गुज़र गई दीवाली रोशनी लुटाते हुये
उम्मीदों के फिर से सपने दिखाते हुये
सतरंगी जगमग और मस्ती में सब डूबे
अँधेरे में लिपटे ग़मों को भुलाते हुये
इक तरफ दिखावा था शान और शौकत का
झूठे आडम्बर से भरपूर दौलत का
जिनकी उजली रातें अक्सर गुज़रती है
अपनी काली कमाई धुंये में उड़ाते हुये
दूसरी तरफ डूबी अन्धेरों में वो बस्ती
जिसके लिए ख्वाब त्योहारों की मस्ती
जिनकी दीवाली है दो वक़्त की रोटी
रातें गुज़रती हैं तारे गिनवाते हुये
कब तलक अमीरी गरीबी में जंग होगी
असमानता में ये जिंदगी बदरंग होगी
आयेगा वो दिन कब जब भूखा न सोये कोई
आयेगा वो दिन कब जब भूखा न सोये कोई
देखेंगे कब हम सब राम राज्य आते हुये
Sunil_Telang/14/11/2012
Sunil_Telang/14/11/2012
No comments:
Post a Comment