Wednesday, November 14, 2012

GUZAR GAYI DEEWALI


गुज़र गई दीवाली

गुज़र गई दीवाली रोशनी लुटाते हुये 
उम्मीदों के फिर से  सपने दिखाते हुये 
सतरंगी जगमग और मस्ती में सब डूबे 
अँधेरे में लिपटे ग़मों को भुलाते हुये 

इक तरफ दिखावा था शान और शौकत का 
झूठे   आडम्बर से भरपूर  दौलत का 
जिनकी उजली रातें अक्सर गुज़रती है
अपनी काली कमाई  धुंये  में उड़ाते हुये 

दूसरी  तरफ डूबी अन्धेरों में वो  बस्ती 
जिसके लिए ख्वाब त्योहारों की मस्ती 
जिनकी दीवाली है दो वक़्त की रोटी
रातें गुज़रती हैं तारे  गिनवाते हुये  

कब तलक अमीरी  गरीबी में जंग  होगी 
असमानता में ये  जिंदगी बदरंग होगी 
आयेगा वो दिन कब जब भूखा न सोये कोई 
देखेंगे कब हम सब राम राज्य आते हुये 

Sunil_Telang/14/11/2012



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