Saturday, November 10, 2012

KIS KE LIYE



किस के लिये 

जिंदगी गुजरी फकत दौलत कमाने के लिये 
दो घड़ी फुर्सत ना मिल पायी  ज़माने के लिये 

अब कहाँ वो संगी साथी,अब कहाँ वो अपना घर 
रोज़ी रोटी के लिये बदले गली, कूचे,  शहर 
बस गये  परदेस में  कुछ काम पाने के लिये 

शहर की रंगीनियों में खो गए सपने कहीं 
भीड़ चारों  और है,पर लोग हैं अपने नहीं 
रोज़ करते हैं व्यसन कुछ चैन पाने के लिये 

वक़्त बदला,सोच बदली,आधुनिकता आ गई 
संस्कारों को नयी ये जेनरेशन  खा गई 
हो रही परिवार में मुश्किल निभाने के लिये 

कम्पटीशन में न जाने हाल क्या हो जायेगा 
तेरा मेरा करते करते  सब फना हो जायेगा 
कोई ना बच  पायेगा आंसू बहाने के लिये 

Sunil_Telang/10/11/2012

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