Monday, November 4, 2013

KAISI DEEWALI

कैसी दीवाली 
इक  ओर  थी  उजालों  में  क़ायनात  खोई 
इक  ओर  भूखा प्यासा  बैठा हुआ था कोई 
ये  कैसी दीवाली  थी जिसमें ख़ुशी भी रोई 

जो  भी  हुई   थी  सारे परिवार  की कमाई 

इक सरफिरे पिता  ने मय खाने  में लुटाई 
माँ  बाप  में  हुई  थी  फिर  रात भर लड़ाई 
ना  कोई  बम  पटाखे  ना आ सकी मिठाई 

अँधेरी  कोठरी   में   दीपक  जला  न  कोई 

बेटा   डरा    था,  सहमी  बेटी  उदास  सोई 
ये  कैसी दीवाली  थी जिसमें ख़ुशी भी रोई 

कुछ  लोग जी रहे  हैं दिल  में  लिये  बुराई 
हर रोज़ की नसीहत उन को  ना रोक पाई 
ये जुआ  शराब की लत  करती है  बेवफाई 
दो पल की है ये मस्ती बाकी है जग हँसाई

जिसने भी अपने घर में विष की ये बेल बोई 
जीते हुये  भी  उसने  पहचान  अपनी  खोई  
ये  कैसी  दीवाली  थी  जिसमें ख़ुशी भी रोई 

Sunil _Telang /04 /11 /2013 







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