Wednesday, November 27, 2013

AAZAD


आज़ाद

रोज़   बस   आरोप  प्रत्यारोप  का है सिलसिला 
कोई  तो  देखे यहाँ हमको अभी तक क्या मिला 

रोज़ी  रोटी  की  फिकर  में  कट रहे दिन रात हैं
हर  ख़ुशी  के साथ चलता है  ग़मों  का काफिला
 

हम  ग़रीबों  के  लिये   कितने  बजट  बनते रहे  
घर  ना  दे  पाये  बने  उनके  महल  बहुमंज़िला 

लोग  बस  आते  रहे   हम  पर  तरस  खाते  रहे
छीन  कर  के  हक़  हमारा राज ये उनको मिला 

लोग  कहते  हैं  वतन  आज़ाद  अपना  हो  गया   
लूटते  अपने  यहाँ  अब क्या करें शिकवा गिला 

Sunil_Telang/27/11/2013








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