आज़ाद
रोज़ बस आरोप प्रत्यारोप का है सिलसिला
कोई तो देखे यहाँ हमको अभी तक क्या मिला
रोज़ी रोटी की फिकर में कट रहे दिन रात हैं
हर ख़ुशी के साथ चलता है ग़मों का काफिला
हम ग़रीबों के लिये कितने बजट बनते रहे
घर ना दे पाये बने उनके महल बहुमंज़िला
लोग बस आते रहे हम पर तरस खाते रहे
छीन कर के हक़ हमारा राज ये उनको मिला
लोग कहते हैं वतन आज़ाद अपना हो गया
लूटते अपने यहाँ अब क्या करें शिकवा गिला
Sunil_Telang/27/11/2013
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