अजनबी
छुपाते क्यों हो ज़ख्म अपने निकल कर सामने आओ
मिलेगा फिर ना ये मौका वही ग़लती न दोहराओ
किया ना काम कुछ ऐसा कि जिस पर गर्व हो तुझको
करो कुछ नाम अपना भी न अब खुद पर तरस खाओ
फना होने के मौके खुशनसीबों को ही मिलते हैं
वतन के वास्ते कुछ कर सको ये दिल को समझाओ
ज़मीं अपनी वतन अपना मगर इक अजनबी सा तू
ये अपनों में पराये कौन हैं दुनिया को दिखलाओ
Sunil_Telang/29/11/2013